दो जून की रोटी
ईश्वर ने ही दिया है ये जीवन ,खो जाता दो जून की रोटी में ।
परेशान रहता है जीवन सारा ,
भोजन आवास व लंगोटी में ।।
दो जून की रोटी नाम बहुतेरे ,
क्षुधा तृप्ति कहाॅं हो पाई है ।
एक जून की मिल पाई रोटी ,
दूसरे जून की योजना बनाई है ।।
आमदनी नित्य दस रुपए की ,
व्यय नित्य बारह की आई है ।
मची है गरीबों की त्राहि त्राहि ,
गरीबों को मार रहा महंगाई है ।।
दो जून की रोटी आजीविका ,
दो जून की रोटी हेतु कमाई है ।
किंतु हाय री बदकिस्मत मेरी ,
कभी हो नहीं पाती भरपाई है ।।
रोटी वस्त्र में ही जीवन है बीता ,
बहुत ही देखा सुनहरा सपना ।
सपना रह गया सपना बनकर ,
सपना बना नहीं कभी अपना ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com