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अब कहाँ मिलते हैं मन के मीत

अब कहाँ मिलते हैं मन के मीत

अरविन्द अकेला,
अब कहाँ मिलते हैं मन के मीत
अब कहाँ बजते जीवन में संगीत
सुनता है कौन दिलों की धड़कन
नहीं दिखती हैं अब वैसी प्रीत।
अब कहाँ मिलते हैं ...l
समझता कौन पति को परमेश्वर
समझता कौन उसे मनमीत
समझती हैं उसे कुछ खिलौना
खेलकर लेती है उसे जीत।
अब कहाँ मिलते हैं...l
कभी खेलती हैं दिल से उसके
कभी खेलती उसकी जज्बातों से
कभी डराती आँसुओं से उनको
कभी कर देती उँची आवाज से चीत।
अब कहाँ मिलते हैं...l
अक्सर पति से वे मूंह लड़ाती
घर के झगड़े को रोड पर लाती
हर बात पर उन्हें ताना देकर
कर देती उनको भयभीत।
अब कहाँ मिलते हैं...l
सेवाभाव कब छूट गया पीछे
उजड गये अब प्रेम के बगीचे
दिल के सपने दिल में रह गये
विखर गये दिल से प्रेमगीत।
अब कहाँ मिलते हैं...l
टूट गये उनके सारे हसीन सपने
जो देखे थे जीवन में उसने
किसी कोने में छटपटा रह अंदर
अब तो हो गयी हर घर की रीत।
अब कहाँ मिलते हैं...l
अरविन्द अकेला,
पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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