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प्रेम : रिश्तों का सूत्रधार

"प्रेम : रिश्तों का सूत्रधार"

प्रेम, यह शब्द अपने आप में ही अनंत भावों को समेटे हुए है। यह एक ऐसा बंधन है जो दो दिलों को एक सूत्र में पिरोता है। चाहे वो दोस्ती हो, परिवार हो या प्रेम संबंध, प्रेम ही हर रिश्ते की नींव है।

जहाँ प्रेम होता है, वहाँ भाव भी होते हैं। स्नेह, सम्मान, विश्वास, त्याग, क्षमा - ये सभी भाव प्रेम से ही उत्पन्न होते हैं। जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम उनके प्रति समर्पित होते हैं, उनकी खुशी में खुश होते हैं और उनके दुःख में दुःखी होते हैं।

प्रेमपूर्ण रिश्ते में संवाद भी खुलकर होता है। हम अपनी भावनाओं को बिना किसी डर या हिचकिचाए व्यक्त करते हैं। गलतफहमी दूर होती हैं और रिश्ते में मजबूती आती है।

प्रेम हमें क्षमा करना सिखाता है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम उसकी गलतियों को भी स्वीकार करते हैं और उसे माफ कर देते हैं। क्षमा से रिश्तों में कड़वाहट दूर होती है और प्रेम और भी गहरा होता है।

प्रेम हमें त्याग करना भी सिखाता है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम उसके लिए अपनी खुशियों का त्याग करने को भी तैयार रहते हैं। त्याग से रिश्तों में बलिदान की भावना पैदा होती है और प्रेम और भी मजबूत होता है।

प्रेम ही वह शक्ति है जो रिश्तों को टूटने से बचाता है। प्रेम में विश्वास होता है, और विश्वास ही रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत होती है। जब हम किसी पर विश्वास करते हैं, तो हम उसे लेकर निश्चित होते हैं, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।

निष्कर्ष :


प्रेम ही रिश्तों का सच्चा आधार है। प्रेम के बिना कोई भी रिश्ता मजबूत और स्थायी नहीं हो सकता। प्रेम हमें एक दूसरे के प्रति समर्पित बनाता है, हमें क्षमा करना सिखाता है, और हमें त्याग करने के लिए प्रेरित करता है। प्रेम ही वह शक्ति है जो रिश्तों को टूटने से बचाता है और उन्हें जीवन भर बनाए रखता है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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