मौसम ने..
बदलते मौसम का अंदाजबहुत रंग ला रहा।
वायू मंडल में घटाओं को
जो बिखेर रहा।
पेड़ पौधे फूल पत्ती आदि
लहरा रहे है।
और मंद मंद हवाओं से
खुशबू को बिखर रहा।।
नजारा देख ये जन्नत का
किसी की याद दिला रहा।
नदी तालाब बाग बगीचा भी
अपनी भूमिका निभा रहा।
ऐसा लग रहा है जैसे
मेहबूबा को स्वर्ग में घूमा रहा।
और मोहब्बत के बारे में
अकेला सोच रहा।।
वर्तमान में भूत की बातें
बैठकर सोच रहा हूँ।
सपनों और कल्पनाओं के
सागर में बहा रहा हूँ।
इसलिए खुदको हसीनवादियों में
घूमा रहा हूँ।
और मेहबूब को मोहब्बत की
याद दिला रहा हूँ।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
मुंबई
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