मोहब्बत में अंतर
पहले और अब मेंबहुत अंतर आ गया है।
मिलने मिलाने का अब
दौर खत्म सा हो गया है।
आत्मीयता का तो मानों
अब अंत सा हो रहा है।
रिश्तें नाते तो अब सिर्फ
टेकनालाजी से निभ रहे है।।
वो भी क्या दिन थे
जब चुपके चुपके मिलते थे।
प्यार मोहब्बत के किस्से
खतों में लिखते थे।
और अपनी मोहब्बत को
खतों से जिंदा रखते थे।
इसलिए तो मोहब्बत को
इबादत भी कहते थे।।
जमाना अब देखो यारों
कितना बदल रहा है।
अपने पराये का भी
खेल बदल रहा है।
मोहब्बत की अब कहा
चर्चा होती है।
अब तो जिस्मों की
बस प्यास बुझाती है।।
भावनाएं दिल में होती थी
न की देखने दिखाने में।
मोहब्बत दिलसे करते थे
न की उसके रंगरूप से।
इसलिए मोहब्बत में यारों
दिलों का मिलन होता था।
पर अब तो मोहब्बत में
शरीर का मिलन होता है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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