प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में

प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में

 निज स्वार्थ अस्ताचल बिंदु,
समता भाव सरित प्रवाह ।
त्याग समर्पण उरस्थ प्रभा,
स्पृहा मिलन दर्शन अथाह ।
पग पग कंटक शूल चुभन,
पर मुख मुस्कान तितिक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।


उच्च निम्न विभेद विलोपन,
दृष्टि आरेखित प्रियेशी छवि ।
विरोध कटाक्ष अपमान सर्वत्र,
सहन अनुपमा सदृश रवि ।
वृहत्त रूप जनमानस प्रश्न,
पर उत्तर शोभा दीक्षा में।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।


विष अंतर सुधा स्पंदन,
लोक हित आलोचना वहन ।
नेह अमिय धार अनंत,
प्रियल चाह नैतिकता गहन ।
आलोकित कर पर जीवन,
बाती श्रृंगार प्रणय अभिरक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।


संघर्ष बाधा पथ पर्याय,
संदेह चरित्र हाव भाव।
परंपरा मर्यादा प्रतिकूल बिंब,
परिवार समाज व्यंग्य घाव ।
शब्द स्वर द्विअर्थ अभिव्यंजना ,
वासना प्रहार शील संवीक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।


महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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