फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में

कारगिल विजय दिवस पर वीर शहीदों के सम्मान में कुछ पंक्तियां सादर निवेदित हैं:__)

फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में

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राष्ट्र इतिहास कारगिल युद्ध,
अदम्य साहस शौर्य गाथा ।
धूमिल शत्रु कुत्सित चालें,
विजय सुशोभित हिंद माथा ।
हौसली संघर्ष सह प्राण आहुति,
मातृभूमि रक्षा अरमान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।


सन उन्नीस सौ निन्यानवें,
कारगिल युद्ध अद्भुत घड़ी ।
मई सह जुलाई त्रि मास ,
हिंद सेना जोश संग लड़ी ।
पांच सौ सत्ताईस उत्सर्ग शोभा,
तिरंगी आन बान शान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।


नियंत्रण रेखा उल्लंघन बिंदु ,
कारगिल युद्ध अहम कारण ।
असफल दुश्मन हर योजना ,
हिंद विजय भव मंत्र धारण ।
दुर्जन पहाड़ियों संग रण खेलियां ,
अभिरक्षित राष्ट्र स्वाभिमान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए, हिंद की मुस्कान में ।।


रिझ न सके वीर जवान,
देख मेहंदी वाले सुंदर हाथ ।
मां बाप भाई बहनों का,
दे न सके पूरा साथ ।
भूल गए संबंध रिश्ते नाते,
राष्ट्र गौरव मान सम्मान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।


महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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