स्त्री मन सदा कुंवारा

स्त्री मन सदा कुंवारा

कोमल निर्मल सरस भाव,
अंतर अनंत मंगल धार ।
त्याग समर्पण प्रतिमूर्ति,
धैर्य संघर्ष जीवन सार ।
सृजन अठखेलियों संग,
अनामिक अविरल धारा ।
स्त्री मन सदा कुंवारा ।।


अप्रतिम श्रृंगार सृष्टि पटल,
स्नेहगार दया उद्गम स्थल ।
पूजनीय कमनीय शील युत,
नैतिक अवलंब दृष्टि सजल ।
आत्मसात नित्य यथार्थ बिंदु,
अनैतिक पथ नित्य दुत्कारा ।
स्त्री मन सदा कुंवारा ।।


अद्भुत तेज पुंज उज्ज्वल,
जग ज्योति अखंडित ।
हर युग अति गुणगान,
गरिमा महिमा शीर्ष मंडित ।
ऊर्जस्वित कर प्राण सकल ,
शक्ति भक्ति प्रेरणा जयकारा ।
स्त्री मन सदा कुंवारा ।।


संस्कृति संस्कार धर्म रक्षक,
परंपरा मर्यादा युक्त चरित्र ।
शुद्ध सात्विक राह गामिनी ,
व्यक्तित्व कृतित्व पवित्र ।
अथक श्रम उत्सर्ग साधना,
पर हित जीवन पार उतारा ।
स्त्री मन सदा कुंवारा ।।


महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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