आओ बादल , रख लूँ अंजलि में प्यार से
डॉ रामकृष्ण मिश्र
आओ बादल , रख लूँ अंजलि में प्यार सेधरती के मंच तुम्हें ग़ीतमय विकास दूँ।।
रोहिणी जगाने आई लेकिन मौन थी
गर्म धूप ओसा गयी पता नहीं कौन थी।
गर्म तवा सी गलियाँ दूब खाक हो गयी
आओ, तो खुश हूँ अब कैसे विश्वास दूँ।।
खाली हैंं टोपरें किसानों के श्रम के
ऊँघ रहे दिन पल छिन अनचाहे भ्रम के।
सूखे की मार नहीं द्वार -द्वार फिर बहुरे
लगता है स्वागत में खुला अट्टहास दूँ।।
हँँसती अट्टालिका कि टूटी झोपड़ियों से
टपकेगी कब धारा बूँदों की लड़ियों से
छलनी की छाती के छिद्रों की पीड़ा का
भरा ताल , कैसे किस- किस को आभास दूँ।।
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रामकृष्ण
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