परिवार

परिवार

सदस्य जोड़ समूह बनता ,
हर समूह का होता नाम ।
जिनका जैसा होता पद ,
उनका होता वैसा है काम ।।
एक समूह होता सप्ताह ,
जिनके सदस्य होते वार ।
हर सदस्य को एक करके ,
बन जाता है यह परिवार ।।
सप्ताह होता छोटी इकाई ,
बड़ा होता है सौर परिवार ।
परिवार में हैं वार समाहित ,
जिनमें समाहित परि वार ।।
परि शब्द अतिशय बनाता ,
वार करता दुर्गुण पर वार ।
दोनों शब्द जब संग जुड़ते ,
निखरकर आता है परिवार ।।
सौरमंडल में नौ ग्रह हैं होते ,
नौ सदस्य होते एक परिवार ।
मातपिता भ्रात श्वसा पत्नी ,
दादा दादी चाचा औ चाची ।
परिवार के ये नौ सदस्य हैं ,
शील गुण आचार हों साॅंची ।।
पिता तो निज पीत मारता ,
माता देती दुर्गुण को है मात ।
माता चाॅंदनी रात ही होती ,
पिता होते हैं नवल प्रभात ।।
भ्रात मिल भ्रांति हैं मिटाते ,
बहन करती हैं चिंतन गहन ।
भ्रात श्वसा दोनों ये सहयोगी ,
सुख दुःख दोनों करे वहन ।।
दादा कंधे ले खूब हैं घूमाते ,
दादी सुनातीं लोरी कहानी ।
भक्ति साहसी और वीरता ,
सुन सोते दादी की जुबानी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ