सुग्रीव का राजतिलक

सुग्रीव का राजतिलक

डॉ राकेश कुमार आर्य
जब बाली का अंत हो गया तो उसकी मृत्यु की सूचना उसकी पत्नी तारा को प्राप्त हुई। तब वह विलाप करती हुई अपने पति के शव के पास आ पहुंची। तारा बहुत ही विदुषी महिला थी। उसे राजनीति का गहरा ज्ञान था। कूटनीति की वह महान पंडिता थी।
उसने अपने पति को अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को बलात अपनी भार्या बनाने से रोका था। उसके परिणाम के प्रति भी उसे सचेत किया था। पर बाली ने उसकी एक नहीं मानी।

तारा सूचित हो गई, पति रहे ना लोक।
भयभीत हिरनी की तरह, करने लागी शोक।।

मृत पति को देखकर, तारा करे विलाप।
पुत्र अंगद को देख लो , प्रियवर करो मिलाप।।

हनुमान आगे बढ़े, दिया तारा को उपदेश ।
कर्म का फल सब भोगते, वेदों का संदेश।।

संसार से जाने से पहले बालि को अपने किए हुए का प्रायश्चित हो चुका था । वह समझ चुका था कि जो कुछ भी उसने अपने जीवन में किया , वह अनुचित, अनैतिक और वेद विरुद्ध आचरण था। जिसका परिणाम उसे इसी प्रकार मिलना था। उसे यह बात भी स्मरण हो आई कि उसकी पत्नी तारा उसे अनुचित कार्य करने से ठीक ही रोकती थी । आज उसे यह भी विवेक हो गया कि उसकी पत्नी कितनी बुद्धिमती थी ? उसकी बात को न मान कर उसने गलती की थी। अतः अब वह सुग्रीव से कहने लगा कि :-

बाली ने सुग्रीव से, कह दी मन की बात।
अंगद मेरे पुत्र का, रक्षण करना तात।।

बुद्धिमती तारा तुम्हें, देवे जो परामर्श ।
सहज रूप में मानना , करते रहोगे हर्ष।।

दु:खित हुआ अंगद बहुत, पिता गए सुरलोक।
पिता गया जब वीर का, लगा मनाने शोक।।

संसार से जाने से पहले बाली ने सुग्रीव से कह दिया था कि वह तारा के परामर्श के अनुसार शासन चलाने का प्रयास करें। क्योंकि तारा शासन की नीतियों में बहुत ही निपुण है। उसका परामर्श सदा ही हितकारी होता है । बाली ने यह भी कहा कि मेरे पुत्र अंगद का पिता के समान रक्षण करना। सुग्रीव ने अपने भाई बाली की इन सभी बातों को ध्यानपूर्वक सुना और उसे वचन दिया कि जैसा वह निर्देश कर रहे हैं, वैसा ही होगा।
अंतिम काल में अपने भाई बाली की इस मनोदशा को देखकर सुग्रीव का भी हृदय परिवर्तन हो गया। वह प्रायश्चित भाव से विचलित होकर सोचने लगा कि अपने भाई बाली को श्री राम के हाथों मरवाकर संभवत: उसने भी अपराध कर दिया है । भाई ने चाहे जो कुछ भी किया था, उसे इतनी कड़ा दण्ड नहीं मिलना चाहिए था। ऐसे भावों से दु:खी होकर वह भी कहने लगा कि :-

सुग्रीव ने संताप वश , कह दी मन की बात।
राज्य नहीं मुझे भोगना, हुआ घोर अपराध।।

पुरुषोत्तम श्री राम ने, दिया उसे उपदेश।
भावुकता नहीं शोभती, बनना तुम्हें नरेश।।

बाली की अंत्येष्टि, की आदर के साथ।
सुग्रीव को श्री राम ने, सौंप दिया था राज।।

किष्किंधा पुरी में हुआ, राजा का अभिषेक।
युवराज अंगद बन गया, शूरवीर वह नेक।।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )
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