सावन में मिलन
सावन में आ गई हुईकुछ दिनों के लिए मायके।
जिया नही लग रहा मेरा
जिया नही लग रहा उनका।
मिलने की राह में दोनों
बहुत व्याकुल हो रहे।
करें तो क्या करें हम
की मिलन हमारा हो जाये।।
पिया की राह में नजरे
उन्हें निहार रही है।
तड़प दिलकी और मनकी
संभले नही संभाल रही है।
उदासी दिखा नही सकती
मैं अपने चेहरे पर।
क्योंकि मैं आई हुई हूँ
मात-पिता के घर पर।।
मिलन पिया से मेरा
हुआ है कुछ दिन पहले।
और अब आ गया देखो
ये सावन का महिना।
मुझे छोड़कर उनको
यहाँ से जाना पड़ेगा।
और बिछड़ने का वियोग
ब्यहता को सहना पड़ेगा।।
क्योंकि आ जो गया है
सावन का ये महिना।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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