सदियों का बोझ: धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक खोखली जड़ों का संकट

सदियों का बोझ: धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक खोखली जड़ों का संकट

सदियों से प्रायोजित इतिहास और विदेशी शासकों के साये में पले-बढ़े हिंदुओं की अपनी धार्मिक आस्थाओं और संस्कृति से बढ़ती दूरी और उदासीनता चिंता का विषय है। यह दूरी न केवल हमारी आध्यात्मिकता को कमजोर कर रही है, बल्कि हमारी जड़ों को भी खोखला कर रही है।

इतिहास का बोझ :-

प्राचीन भारत की समृद्ध संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को विदेशी आक्रमणकारियों और औपनिवेशिक शासकों ने विकृत करने का प्रयास किया। इतिहास की गलत व्याख्याओं ने हमारी पीढ़ियों को अपनी विरासत से दूर कर दिया। परिणामस्वरूप, युवा पीढ़ी अपनी पहचान और संस्कृति से जुड़ने में असमर्थ महसूस करती है।

सेक्युलरिज्म का गलत अर्थ :-

धर्मनिरपेक्षता का गलत अर्थ लगाकर, धार्मिक शिक्षा और प्रथाओं को हाशिए पर धकेल दिया गया। युवाओं को सिखाया गया कि धर्म अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का प्रतीक है, जबकि आधुनिकता और प्रगतिशीलता धर्म से परे है। इस गलतफहमी ने धार्मिक मूल्यों और संस्कृति के प्रति उदासीनता पैदा कर दी है।

परिणाम :-

इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षरण के गंभीर परिणाम हैं। हमारी सामाजिक ताना-बाना कमजोर हो रहा है। नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। परिवार और समुदाय टूट रहे हैं।

पुनरुत्थान की आवश्यकता :-

यह समय है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें और अपनी धार्मिक आस्थाओं और संस्कृति को पुनर्जीवित करें। हमें इतिहास की गलत व्याख्याओं को चुनौती देनी होगी और युवा पीढ़ी को हमारी समृद्ध विरासत से परिचित कराना होगा।

उम्मीद की किरणें :-

हालांकि, अभी भी उम्मीद की किरणें हैं। युवाओं में अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। कई संगठन और व्यक्ति हमारी विरासत को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रहे हैं।

निष्कर्ष :-

हमें अपनी धार्मिक आस्थाओं और संस्कृति को बचाने के लिए एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। यह केवल तभी संभव होगा जब हम अपनी जड़ों से जुड़ेंगे और अपनी विरासत पर गर्व करेंगे।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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