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आग

आग

किसने घोला है इस बहुरंगी फीजा में
साम्प्रदायिकता का विष
वैमनस्यता की आग किसने लगाया
किसने भड़काया जातीय दंगे ।
आज मानव मानव का दुश्मन बन बैठा
साम्प्रदायिकता का विष हलक तक उतारा
और लगा दिया है वैमनस्यता की आग
जिसकी लपट में सब जल रहे हैं ।
अंधेरी काली अंधियारी रात में
पंडित, मौलवी और पादरी मिलते हैं
वैमनस्यता का शर्बत बनाने का
एक नया तरीका ईजाद करते हैं
और सुबह- सुबह बांटते हैं
अपने अपने प्रशंसकों के बिच
जो साम्प्रदायिकता का बीज
घोलते हैं इस बहुरंगी फीजा में
और लगा देते हैं वैमनस्यता की आग।


जितेन्द्र नाथ मिश्र,
कदम कुआं, पटना।

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