आम फल
मेरी क्या गलती थीजो मुझे छोड़ दिया।
मेरे रस का रसपान
बहुत तुमने कर लिया।
जब-जब तेरा मन हुआ
तब-तब तुमने मुझे चूसा।
अब जाने का समय हुआ
तो आम से मुँह मोड लिया।।
जब आता हूँ तो
गुण गान करते हो।
मेरी प्रसन्नता के लिए
क्या क्या करते हो।
अपने घरों में रखते
और दाम भी देते हो।
क्योंकि मैं बहुत मिठा
और रसेदार स्वादवान हूँ।।
मानव संसार में मुझे
लोग राजा कहते है।
और बड़े अच्छे से मुझे
मेहफिलों मे रखते है।
आम रस पीते ही लोग
बहुत आनंदित होते है।
न जाने कितनी प्रजाति
आम नाम की होती है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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