करैला ने पूछा नीम से,

करैला ने पूछा नीम से,

हम में कौन ज्यादा कड़वा है।
नीम ने हंस कर कहा,
तुम किस भ्रम में पड़े हो,
हम दोनों की कड़वाहट कुछ भी नहीं,
जितना आदमी का जबान कड़वा है।
हम और तुम जग उजागर हैं,
पर किसी के मौत का कारण नहीं हैं।
यहाँ तक की हम तुम,
औषधि भी बन जाते हैं।
अपनी कड़वाहट से भी,
मानव जीवन को बचाते हैं।
जबान मुंह में छुपी हुई है,
पर इसकी कड़वाहट ,
बहुतों के मौत का कारण बनती है।
किसी किसी की जबान,
कड़वाहट में आग उगलती है।
सभ्य और शांत जनमानस भी,
उस भयंकर अग्नि में जलती है।
फिर भी वे निर्लज्ज ऐसे हैं,
कि कभी होश में जबान खोलते नहीं।
चाहे उनकी जबान जितना जहर उगले,
वो सोच समझ कर कभी बोलते नहीं।
संसार में जितना भी आज,
दंगा फसाद हो रहा है।
हरेक के पीछे भाषा की कड़वाहट है।
फिर भी यह सभ्य समाज ऐसा है,
कि जगे हुए भी लगता है, सो रहा है।
जय प्रकाश कुवंर
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