पुनपुन मेला

पुनपुन मेला

अवध किशोर मिश्र
 हद् है, 'उनकी'(गोलू के पापा की) जिद्द की।
दोपहर के तीन बजने वाले हैं!.. तीनो पड़ोसी (तीनों गोतनी मय बाल बच्चों के) और गांव के अधिकांश लोग पुनपुन मेला से लौट आए हैं। दाल भात आलू का चोखा बना कर रखे तीन घंटे से ऊपर हो गए.. 'इनका' कोई पता ठिकाना नहीं। इनको अपना देह तो चलता नहीं... 63 साल के हो गये.. तीन साल से फाइलेरिया के कारण दाहिना पैर हाथीपांव हो गया... 'कलुवा' के दुकान से आलू, नीमक, हल्दी लाने को कहो.. तो पांव 'दरद' करने लगता है।.. और आज 'मतारी'(माता जी )को पुनपुन स्नान कराने के लिए 'बुढ़ारी'में भी जवानी फूट पड़ा है। ... चलें हैं-श्रवण कुमार बनने... कि पीठ पर लादकर माई को 'पुनपुन' स्नान करवाएंगे।
लाख मना कर लो, पर अपनी जीद के आगे किसी की सुने कब हैं..? मन तो करता है दो डंडा.......।

..... बार बार छत पर जाकर सड़क पर रुकने वाले टेंपू, गाड़ी , बस को देखती हूँ-शायद अब उतरेंगे दोनों- माँ और बेटे! पर नहीं,.. एक एक कर सब लौट रहे हैं.. पर ये...
एक कटोरी धतूरा ,कंटैला, सरसों का तेल पकाकर आधे घंटे से पैर, घुटना, केंहुनी, कमर में अपने से मालिश कर रही हूँ.. ई गठिया ..जोड़.. का दर्द जाने का नाम भी नहीं ले रहा है -सब कहते हैं-ठंढ़ा से बचो, -ठंडा से बचो ' ठंडा से क्या खाक बचो..? पैर और कमर जाड़ा में और अकड़ जाता है.. चार बजे भोर में जगकर 'कार्तिक स्नान' से 'दर्दवा ' इधर जादा बढ़ भी गया है.. 'ई ' तो रोज मना करते हैं-
"एतना सबेरे सबेरे भोर में काहे नहाती है। ठंडा मार देगा तो हमरे परेशान करेगी.... हम पहिले कहे देते हैं... हम डाक्टर घरे दिखाने नहीं ले जाएंगे.. हाँ...। "
अब' इनको' केतना समझाएं कि अगिला जनम के लिए थोड़ा बहुत जो धरम करम बचा है कर लें... अभी बेड पकड़ लें तो ऊ भी ना हो पायेगा...।
.. लेकिन ई भी बुढ़ऊ को कितना कहें..? ई भी तो कब सुख पाए?... जब शादी हुई थी तब ई पंद्रह के थे और मैं तेरह की थी...!.. बाप रे! हमारी शादी के अड़तालीस साल गुजर गए.. अड़तालीस मतलब पचास में दू कम.... ! किशोर से कब युवा और प्रौढ़ से कब बुढ़ापा..? पता ही कहाँ चला..? मैट्रिक पास करने के बाद ई कमाने दिल्ली चले गए.. (गए तो थे सूरत पर यहाँ सब कहते थे कि लड़का दिल्ली में कमा रहा है) सुबह छ:बजे से रात दस बजे तक कमाते... घर में तीन ननद और दो देवर (बड़े भाई की शादी पिताजी कर गए थे)की शादी विवाह करते मरनी जीनी छठी सतईसा करते कंगाल के कंगाल रह गए। अब तो भगवा भतीजा लोग नौकरी करने लगे। पचास बावन उम्र होते कंपनी बंद ..तो..काम बंद..। बेटा एक फैक्ट्री में 'केजुअल' काम मेंलगा तो मेजर एक्सीडेंट... जान बची तो दूसरी बीमारी कैंसर की चपेट में...तीन साल सूरत में और रहे...किसी प्रकार गुजारा मुश्किल तो वापस घर... पुश्तैनी घर...
यहाँ आते नज़ारा बदल गया.. तीनों भाइयों ने जमीन, पुश्तैनी मकान चार हिस्सों में.. तीन आपस में चौथा माँ का... एक एक साल माँ जिस बेटे के साथ रहती उसका हिस्सा और पेंशन उस बेटे के हाथ रहता..
घर लौटने पर 90 के दशक वाली भाजपा की तरह अछूत समझा गया... !
....जबतक माँ जिंदा है... आपको कुछ नहीं मिलेगा.. माँ भी छोटे बेटे में रहना चाहती है....।


...... आज सुबह' ई' जब बाहर निकले तो माँ जी तेल से सनी पुरानी मटमैली साड़ी में छोटे देवर के घर के बाहर एक टूटी खाट पर पड़ीं थीं। शरीर पर केवल हड्डी का ढांचा, उभरी नशें, सिकुड़ी चमड़ी.. मांस का नामो निशान नहींं। बाहर तीनों भाइयों के घर ताला लटका था....
"... माँ, ये सब कहाँ चले गए आपको बाहर छोड़कर..? "
.".. पुन..पुन..मेला नहाए....। "
" आपको मन करता है....मेला जाने का..? "
सत्तासी साल की माँ की बूढ़ी आंखों में चमक आ गई।
"...हमरा कौन पूछईत है हो!... सबके अप्पन अप्पन मेहरारू बेटा बेटी के घुमाने से फुर्सत हईन.... "
माँ की आंखों में विवशता का दर्द था...
गोलू के पापा बोले_
"चलिए, मैं आपको पीठ पर बैठाकर पुनपुन मेला स्नान करा लाता हूँ। "
मैं झल्लाकर बोली-
"गाड़ी मोटर नहीं जा रहा है क्या..? चले हैं श्रवण कुमार बनने..! अपने दो डेग जाने में तीन बार कंहंंरते हैं,..डेढ़ कोस पैदल जाना और आना..ऊपर से माँ जी को पीठ पर लादकर ऊंचा नीचा गबड़ा टिल्ला,ढाकर. पगडंडी पर चलना...हंसी ठठ्ठा है क्या..? माँ जी को कुछ हो हवा गया तो जिंदगी भर का कलंक..दुनियादारी" तो सीखे नहीं कुछ..अपने भाई बहन को पहचानना बाकी रह गया है क्या..?एक्को गति बाकी नहीं रखेंगे... "


लेकिन 'ई' बुढ़ऊ मानें तब न..? खाना ठंडा हो गया... इ आवें तब न इनको खिलाकर खाएं.....


.... अरे, ई बाहर हल्ला गुल्ला कैसा..? तीनों भाई और गोतनी सब किससे लड़ झगड़ रही हैं.. बीच बीच में 'इनकी' मिमियाने की आवाज.. आ गए क्या..?
लंगड़ाते हुई दरवाजा खोल कर बाहर निकली तो मन सन्न हो गया!.. छोटी गोतनी और देवर चिल्ला उठे-


"दीदी..! /भाभी!.. आप अपने मरद को कंट्रोल मे रखिये..नहीं तो..नहीं तो...बड़े- बूढ़े का लिहाज भूल जाएंगे.।... किससे पूछकर ये मां को पुनपुन मेला ले गए थे...? माँ को गिरा दिए...।


मैं 'इनको' किसी तरह लेकर घर आई। आंखें मेरी भी भर आईं...। ....देवर के टाइल्स लगी घर की ऊंची सीढ़ी चढ़ते हुए 'इनका' पैर फिसला और माँ जी को लिए दिए गिर पड़े थे। माँ जी को बचाने में अपने पैर की हड्डी तोड़ लिए....।
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