दुसरों को रूला कर, कोई हंस नहीं सकता।
दुसरों को उजाड़ कर, कोई वस नहीं सकता।।कल, बल, छल सब, कब तक काम आएगा।
आखिर एक दिन यह तन, निर्बल हो जाएगा।।
बहुत समय तक, तुम्हारा रुतबा रह न पाएगा।
उम्र के साथ साथ, यह मिटता चला जाएगा।।
सोचो उस दिन के लिए, जब यौवन ढल जाएगा।
कोई न कोई तुम्हारे उपर भी, हावी हो जाएगा।।
तुम चिखोगे, चिल्लाओगे, पर कुछ न करने पाओगे।
याद करोगे अपने बुरे कर्मो को , और खुब पछताओगे।।
छल कपट छोड़ भला करोगे तो, सज्जन कहलाओगे।
दूनिया छोड़ जाने पर भी, अमर हो जाओगे।।
जय प्रकाश कुवंर
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