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क्रोध नहीं मैंने तो मानव को यह चेताया,

क्रोध नहीं मैंने तो मानव को यह चेताया,

काट दिए वृक्ष धरा को खोखला बनाया।
घने वृक्ष जड़ें जाल सी, मिट्टी रोके रखती,
कंकरीट बो कर धरती पर बोझ बढ़ाया।


पाट दिये सब ताल तलैया नदियों पर भी क़ब्ज़ा,
काट काट कर जंगल सारे, जंगलों पर भी क़ब्ज़ा।
बचे नहीं कहीं नाले नाली, पानी कहाँ पर जाये,
हबस बढ़ी मानव की इतनी सड़कों पर भी क़ब्ज़ा।


बार बार समझाया तुमको, मत कर तू मनमानी,
प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे, नहीं बचेगी जिन्दगानी।
भू गगन वायु अग्नि नीर से मिल, बनता है भगवान,
प्रकृति का संरक्षण संवर्धन, प्रकृति से मिले रवानी।

अ कीर्ति वर्द्धन
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