दुश्मनों के पत्थर से सीने में

कारगिल विजय युद्ध में शहीद सपूतों को कोटि कोटि नमन । शहीद सपूतों हेतु समर्पित एक रचना का प्रयास :

दुश्मनों के पत्थर से सीने में ,

तू ने ठोका जो यह कील है ।
विजय ध्वज लहराने वाला ,
भारतीय अंग कारगिल है ।।
हे कारगिल को जीतनेवाले ,
कारगिल ही तेरा ये दिल है ।
तेरे समक्ष दुश्मन भी ढूॅंढ़ता ,
चूहे सम कहीं निज बिल है ।।
टूटने नहीं देंगे दिल को तेरे ,
तुम सम वीर महफिल है ।
तेरे समक्ष औकात ही क्या ,
तेरे समक्ष वे कौए चील हैं ।।
तुम हो साहसी वीर पराक्रमी ,
तेरे समक्ष अरि ये नील हैं ।
दूर से ऊॅंचे ये दिखने वाले ,
रेत के बने ये बड़े से टील हैं ।।
शहीद सपूतों चिंता न करना ,
कारगिल रूप तेरा दिल है ।
दिल को तेरे टूटने नहीं देंगे ,
तेरा दिल भारत का दिल है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना


अरुण दिव्यांश


डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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