Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

सावन

सावन

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
न पनघट है न पनिहारिन
न ग्वाल बचे न ही ग्वालिन,
दूध दही की बात करें क्या
मट्ठा मक्खन हुआ पुरातीन।
शाम ढले चौपालों पर,
एक मेला सा लगता था,
गाँव गली का घर घर का
सुख दुख साझा हो जाता था।
सावन का मदमस्त महीना
घर घर झूले पड़ते थे,
पैंग बढ़ाकर झूला करते
गीतों में जीवन रचते थे।
बात हुयी सब भूली बिसरी
कुछ को तो कुछ याद नहीं,
नये दौर की पीढ़ी को तो,
साझा संस्कृति ज्ञात नहीं।
दादी नानी के किस्से
अब भूली बिसरी बात हुयी,
आधुनिक बनकर वह भी तो
मोबाइल टीवी की दास हुयी।
बचे नहीं हैं आँगन में अब
नीम आम पीपल के पेड़,
जिनकी छाया में रहकर
समय बिता देते थे लोग।

भरी दोपहरी जेठ मास की
पीपल की शीतल छाँव
सावन में अमुवा पर झूला
सखियों की होती थी ठाँव।

सखी सहेली व्यस्त हो गयी
बन्द घरों में- त्रस्त हो गयी,
जबसे छूटा साझा चूल्हा
निज घर में ही सिमटा गाँव।


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ