स्वामी जी की पुण्यतिथि है ,
उनकी जय जयकार मना लें ।स्वामीजी ही हमारी संस्कृति ,
आओ उन्हें हृदय से लगा लें ।।
कोटि कोटि तुमको नमन है ,
श्रद्धांजलि अर्पित करता हूॅं ।
चल पड़ा हूॅं राहों पर मैं तेरी ,
स्वयं को मैं समर्पित करता हूॅं ।।
मार्ग बताया था तूने ही मुझे
तूने ही हौसला बढ़ाया था ।
नारी और नर कई रूपों में ,
सर्वत्र तुझको ही पाया था ।।
प्रथम जगाया आवाज देकर ,
द्वितीय जीवनी भेजाया था ।
दूसरी प्रति उसी से भेजकर ,
अपनी जीवनी पढ़वाया था ।।
तृतीय डॉ जख्मीजी थे आए ,
जो हथेली मुझे उठाया था ।
छोड़ चले डाॅ जब धरा को ,
आर प्रवेश ने अपनाया था ।।
सारे रूपों में तुम्हीं दिखे हो ,
साहित्य काव्य भी तुम हो ।
तेरे बिन है धरा पर उदासी ,
फिर भी जानें कहाॅं गुम हो ।।
पुनः तुझे मेरा यह नमन है ,
तेरा हार्दिक है यह आभार ।
चलती रहे निरंतर लेखनी ,
कृपा बरसाओ प्रभू अपार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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