नारी नर पर भारी है,

नारी नर पर भारी है,

फिर भी वह बेचारी है।

आँसू का हथियार चलाती,
सबको अपना दास बनाती,
पलभर में घुटनों पर लाती,
फिर भी कितनी प्यारी है,
नारी नर पर भारी है।

पिता पति हो या बेटा भाई,
सबने ही मिल राह दिखाई,
कदम कदम पर दिया सहारा,
फिर भी नर अत्याचारी है,
नारी नर पर भारी है।

कानून खड़े हैं उसके हक में,
सामाजिक ताने भी अपने,
अन्जाने भी दिखलाते सपने,
उसके संग हमदर्दी सारी है,
नारी नर पर भारी है।

कोई रोके न कोई टोके,
देर रात तक घर को लौटे,
उन्मुक्त जीवन ही आजादी,
आधुनिकता की बिमारी है
नारी नर पर भारी है।

घर पर चाह अकेली हो,
अपनी अलग हवेली हो,
सास ससुर लगते दुश्मन से,
उनको रखना लाचारी है,
नारी नर पर भारी है।

वृद्धाश्रम भेज रही है,
धन दौलत समेट रही है,
पति पले गुलाम के जैसा,
कुछ बोले मुश्किल भारी है,
नारी नर पर भारी है।

किट्टी कल्ब हैं उसके शौंक,
सिगरेट दारू की भी धौंक,
पुरूष दोस्त हैं उसके सारे,
बस पति लगे बिमारी है,
नारी नर पर भारी है।

रूप अदा से करे दिवाना,
बातों से गैरों को फुसलाना,
खेल सदा से उसका देखा,
अधिकार मिले सरकारी है,
नारी नर पर भारी है।

दहेज का हथियार मिला है,
आँसू पका उपहार मिला है,
कत्ल कर सकती नयनों से,
अधिकार निरन्तर जारी है,
नारी नर पर भारी है।

सदा खड़ी वह नर से आगे,
नर लगते संग खड़े अभागे,
सब कुछ सहते हंस हंस कर,
नर की कैसी लाचारी है,
नारी नर पर भारी है।

समानता की बात बताती,
पर हरदम आरक्षण पाती,
मातृत्व को भी बिसराती अब,
भ्रूण की वह हत्यारी है,
नारी नर पर भारी है।

आधुनिकता की दौड़ हो रही,
सम्पूर्ण जगत से होड़ हो रही,
नग्नता बनी है मापक,
कैसी यह लाचारी है,
नारी नर पर भारी है।

नारी बन गई है विज्ञापन,
विज्ञापन से जीवन यापन,
मौज मस्ती की आजादी हो,
उसकी आजादी जारी है,
नारी नर पर भारी है।

चीर का बंधन मर्यादा हमारी है,
बंधन के बंध टूटे विपदा भारी है,
नारी और नीर की गति एकसारी है,
बंधनों को छोड़ने की जिद सारी है,
नारी नर पर भारी है।

अ कीर्ति वर्द्धन
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