वृक्ष मेरा परिवार ,
करे सपने साकार ।मेरा प्राण वृक्ष में ,
वृक्ष बिन सब बेकार ।।
वृक्ष में ही मैं बसा ,
वृक्ष बसा है मुझमें ।
वृक्ष सबमें समाहित ,
इसमें उसमें तुझमें ।।
वृक्ष कर्तन को रोको ,
नव वृक्ष तो लगाओ ।
नव वृक्ष लगाकर के ,
स्व परिवार बढ़ाओ ।।
स्व प्राण बसे वृक्ष में ,
वृक्ष प्राण मैं बचाऊॅं ।
स्वस्थ रहा ये वृक्ष तो ,
मैं भी स्वस्थ हो जाऊॅं ।।
मेरे बिन वृक्ष अधूरा ,
वृक्ष बिन मैं अधूरा हूॅं ।
मेरे हेतु वृक्ष विष पीता ,
वृक्ष बिन कहाॅं पूरा हूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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