सज्जनता जीवन का नाज है ,
मृदुल वाणी ये सुंदर साज है ।सद्व्यवहार बचाता ये लाज है ,
मानवता का बुलंद आवाज है ।।
जीवों में मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ ,
प्रेम सौहार्द जीवन का काज है ।
हुए अलग इन काजों से हम ,
जीवन पर ही गिरता गाज है ।।
कल तक था जो मानव जीवन ,
अब मिल रहा नहीं ये आज है ।
सहयोग बिन है जीवन अधूरा ,
सहयोग बिन जीवन खाज है ।।
मानव जीवन हैं पाए धरा पर ,
मानव जीवन का बड़ा राज है ।
कर्म का मालिक मस्तिष्क यह ,
कर्म रूपी पहनता ये ताज है ।।
कानों से सुनते बातें बहुत हम ,
ऑंखों में समाया यह लाज है ।
नाक से सूंघते हैं सुगंध दुर्गंध ,
मुख से देते हम ये आवाज हैं ।।
दाॅंतों से हम भोजन हैं चबाते ,
जिह्वा से लेते हम ये स्वाद हैं ।
हाथों से हम काम सब करते ,
हमें सर्वत्र पहुॅंचाते हमारे पाद हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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