जिससे जिसका दिल लग जाए

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)

जिससे जिसका दिल लग जाए ,
वही उसे अच्छा लगता है ।
जिससे निजी स्वार्थ सधता हो,
वही उसे अपना लगता है।
नफरत के इब्लिसजादों को,
दोज़ख जन्नत-सा लगता है।
सत्य-अहिंसा का परिपंथी,
पुण्यपुञ्ज अधुना लगता है।
कायरता का जो पुतला था,
'हीरो' हीरा-सा लगता है।
नरक-कीट को सुधा-सुधाकर,
मौत का दरवाजा लगता है ।
सन्निपात से पीड़ित जन को,
मीठा भी तीता लगता है।
पाप-व्यसनियों को उपदेशक,
आँखों का काँटा लगता है।
(परिपंथी =विरोधी)
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