तू मुझे सींच मैं तुझे सींचूॅं

तू मुझे सींच मैं तुझे सींचूॅं ,

आ तेरा मैं सत्कार करूॅं ।
तू मुझे चाह मैं तुझे चाहूॅं ,
आ तुझे मैं प्यार करूॅं ।।
तू दे पसीना मैं खून दूॅंगा ,
जितना देगा मैं दून दूॅंगा ।
तुम जो मुझको बचा लो ,
तेरे स्वस्थ जीवन बुन दूॅंगा ।।
तू मुझसे है मैं तुझसे हूॅं ,
आ तुझे मैं स्वीकार करूॅं ।
विधाता ने तुझे मुझे सृजा ,
आ तुझे निजाधार करूॅं ।।
तू मुझे सॅंवार मैं पुश्तों सॅंवारूॅं ,
तू मुझे निखार मैं पुश्तों निखारूॅं ।
हम तुम एक दूजे पर निर्भर ,
तू मुझे उबार मैं पुश्तों उबारूॅं ।।
तू मुझपे वार मैं तुझपे वारूॅं ,
तू मुझपे हार मैं उपहार करूॅं ।
नहीं बनें एक दूजे के दुश्मन ,
तू मुझे पुकार मैं तेरा पुकार करूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।


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