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राष्ट्र धर्म .....?

राष्ट्र धर्म .....?

वसुधैव कुटुम्ब का सार हमने जाना है,
सीमाओं का बंधन हमने नहीं माना है।
करते हैं घुसपैठ जो अपने देश में,
भाई का भाई के घर आना जाना है।

लूट खसौट भ्रष्टाचार से मत घबराओ,
ताकतवर भाई का राग सुहाना है।
घर के मुखिया हमसे कहते शांत रहो,
घुट घुट कर कब तक हमको रहना है।

अपनी संताने अब बड़ी हो रही हैं,
भाई की हकीकत से रूबरू हो रही हैं।
आज विरोध का स्वर लिए खड़े हैं,
अत्याचार किसी का अब नहीं सहना है।

खींची थी दीवार, मुल्क जब बाँटे थे,
टूट गए सब रिश्ते नाते जो साझे थे।
क्यों करते घुसपैठ यहाँ कोई बतला दे,
हस्तक्षेप किसी का हमको नहीं सहना है।

थोड़ा सा मान बचा है अभी दिलों में,
बुजुर्गों का सम्मान बचा है घर घर में।
ऐसा ना हो सब ध्वस्त हो जाए पल में,
बच्चों का अब ऐसा ही कहना है।

ताऊ चाचा, बाबा सब सावधान हो जाओ,
लूट खसोट, भेदभाव का खेल बंद कराओ।
करते हैं सम्मान आपका, अपनी संस्कृति है,
करना दुष्टों का नाश, कृष्ण का कहना है।

तुम जो घर के मुखिया बने हुए हो,
भ्रष्टाचार के प्रश्रय दाता बने हुए हो,
भीष्म पितामह बन सत्ता से निष्ठा कहते,
अर्जुन के बाणों से तुमको भी मरना है।

खेल रहे थे खेल अभी तक मर्यादा में,
सम्मान कर रहे थे गुरुजनों का रणक्षेत्र में।
गुरुजनों की निष्ठा भी अब स्वार्थ लिप्त है,
उठो धनुर्धर उनका भी तो वध करना है।

कौन है अपना कौन पराया, मत विचार करो,
सत्य निष्ठा और धर्म का प्रचार करो।
जातिवाद क्षेत्रवाद , भ्रष्टाचार के जो संरक्षक
उठो भीम उनका भी मद भंजन करना है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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