जहाँ शब्द व्यर्थ हों, वहाँ मौन बोलता है

जहाँ शब्द व्यर्थ हों, वहाँ मौन बोलता है

"शब्दों का जादू है, वो दिल छू लेते हैं, भावनाओं को व्यक्त करते हैं, और विचारों को उड़ान देते हैं"। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर जगह शब्दों का प्रभाव समान होता है? क्या हर कान उन शब्दों को सुनने के लिए तैयार होता है, और हर दिल उन भावनाओं को समझने के लिए तैयार होता है?


कभी-कभी जीवन हमें ऐसे मोड़ पर ले जाता है जहाँ हमारे शब्द व्यर्थ हो जाते हैं। जहाँ समझने वाले नहीं होते, जहाँ भावनाओं को अनदेखा किया जाता है, और जहाँ विचारों को मूर्खता समझा जाता है। ऐसे समय में, चुप रहना ही सबसे बड़ी शक्ति बन जाता है।


मौन, क्रोध या निराशा का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्म-सम्मान और आत्म-संयम का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि आप उन लोगों के स्तर तक नहीं गिरेंगे जो आपकी कद्र नहीं करते हैं।


मौन, एक ऐसा हथियार है जो बिना किसी शोर-शराबे के अपना संदेश पहुंचाता है। यह क्रोध का जवाब नहीं देता, अपमान का बदला नहीं लेता, और गलतफहमी को और नहीं बढ़ाता। मौन, धैर्य और शक्ति का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि आप अनावश्यक बहस में उलझने के लिए तैयार नहीं हैं, और आप अपनी शांति बनाए रखना चाहते हैं।


अपने शब्दों को उन लोगों के लिए बचाकर रखें जो उन्हें सुनने और समझने के योग्य हैं। जब आप उनसे बात करते हैं जिनके पास ग्रहण करने की क्षमता है, तो आपके शब्दों में शक्ति और प्रभाव होगा।


यह भी याद रखना ज़रूरी है कि मौन हमेशा कमजोरी का प्रतीक नहीं होता। कभी-कभी यह विरोध का सबसे शक्तिशाली रूप भी हो सकता है। जब आप किसी गलत बात का विरोध मौन रहकर करते हैं, तो आप उस गलत बात को स्वीकार करने से इंकार करते हैं। आप अपनी आवाज न उठाकर भी अपनी असहमति व्यक्त करते हैं।


इसलिए, यदि आप कभी ऐसी स्थिति में होते हैं जहाँ आपके शब्दों को समझा नहीं जा रहा है, तो निराश न हों। चुप रहें, और अपनी शांति बनाए रखें। मौन, आपको शक्ति देगा और आपको सही समय आने का इंतजार करने में मदद करेगा, जब आपके शब्दों का मूल्य होगा और उनकी सराहना की जाएगी।


मित्रों याद रखें, मौन कभी भी हारा नहीं है, बल्कि यह एक नई शुरुआत का संकेत हो सकता है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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