कभी कभी यूँ भी तो अच्छा लगता है,

कभी कभी यूँ भी तो अच्छा लगता है,

बचपन का दौर पुराना सच्चा लगता है।
नया दौर पर हम खंडहर तो अर्वाचीन हैं,
अब भी खत से संदेश सुहाना लगता है।


कोरा कागज आया उनका, हमने चिट्ठी समझा,
कुछ नहीं लिखा उसमें, हमने सब कुछ समझा।
रखा है अनमोल खजाना, उनकी यादों का,
ख़त को ही हमने, उनके मन का दर्पण समझा।


ख़त में उनकी बातों की खुशबू है,
तन्हाई में मिलन यादों की ख़ुशबू है।
कभी रूठना कभी मनाना याद सभी,
जुदा हुए उनकी आहों की खुशबू है।


अ कीर्ति वर्द्धन

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