प्रकृति के उत्संग में,परम आनंद स्पंदन

प्रकृति के उत्संग में,परम आनंद स्पंदन

पेड़ पौधे जीव जन्तु,
सदैव मनुज परम मित्र ।
नदी पर्वत व सागर सह,
स्वर्ग सदृश सुनहरे चित्र ।
सहेज मातृ वत्सल आभा,
जीवन सुरभित सम चंदन ।
प्रकृति के उत्संग में,परम आनंद स्पंदन।।


नैसर्गिक सानिध्य अंतर,
जीवन सदा आह्लादित ।
मृदुल मधुर मनोरम छवि,
अपनत्व अथाह आच्छादित ।
अनूप अनमोल विरासत संग,
उर कलियां अनुभूत रंजन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।


उत्साह उमंगी हरित आंचल,
सुख समृद्धि अनंत वरदान ।
दुःख दर्द कष्ट विलोपन,
रज रज उत्स्विक आह्वान ।
वृक्षारोपण अभियान अहम ,
सहर्ष सक्रिय सहभागिता मंडन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।


पुरजोर विरोध अतिदोहन बिंदु,
नैतिक महत्ता व्यापक प्रचार ।
रोक अंध भौतिक प्रगति रथ,
प्राकृतिक संतुलन प्रयास प्रसार ।
तज निज स्वार्थ समग्रता हित,
संरक्षण संकल्प मैत्री बंधन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।


*महेन्द्र कुमार *

(स्वरचित मौलिक रचना)


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