सुहाने बादलों की छत
डॉ रामकृष्ण मिश्र
सुहाने बादलों की छत बरसती धार देखें हम। जरा भींगे कि बूँदों से मिलें अभिसार देखे हम।।
बिछी हलचल भरी जल श्वेत चादर दूर तक कैसे।
तडपती तप्त धरती का विवक्षित प्यार देखें हम।।
किसी के आसरे भोली नहाती अकेली मैना।
पपीहे की व्यथा के शून्य का आकार देखंं हम।।
मगन भन स्नान में तल्लीन सब पादप बड़े छोटे।
लताओं की मृदुल मुस्कान में आभार देखें हम।।
सरित संवेगशीला विहवला सी क्यों निकल भागी।
अबूझे अकथनीय सस्नेह वारि विहार देखे हम।।
रामकृष्ण
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