सोचना यह नहीं मुश्किल हम कहाँ जाएँ।

सोचना यह नहीं मुश्किल हम कहाँ जाएँ।

डॉ रामकृष्ण मिश्र

सोचना यह नहीं मुश्किल हम कहाँ जाएँ।
असल में है सोचना हम किस तरह छाएँ।।
यह जरूरी नहीं अच्छे दिन हमारे हों ।
खूब अच्छी सोच का संदर्भ तो पाएँ।।
स्वार्थ मंडित आचरण से भिन्न भी कुछ हो।
झोपड़ी के दर्द के भी गीत कुछ गाएँ।।
आग गढ़ते दानवोचित भाव ठंढे हों।
बाँटना हो मुस्कुराहट में चमक लाएँ।।
हवा के संपर्क में ही धूल उड़ती है।
कहाँ दक्षिण की विवशता और कटु बाएँ।।
कुटिलता के शीर्ष चढ़ना किसलिए सोचें। 
ताप पीड़ित केलिए शीतत्व पहुँचाएँ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ