परिचय पूछ रही मुझसे ही

परिचय पूछ रही मुझसे ही

डॉ रामकृष्ण मिश्र
परिचय पूछ रही मुझसे ही
ठहरी हुई दिशाएँ।
मुझे स्वयं भी पता नहीं
उनको कैसे बतलाएँ।।

बाजारू चिंतन का कोई
टुकड़ा- सा उखड़ा- सा।
या फुटपाथी जीवन का
अनसुना नया दुखड़ा सा।
खुला -खुला जो स्वयं पृष्ठ है
कैसे खोल दिखाएँ।।

उलझन के झंझावातों में
भूला- सा भटका- सा।
संवेदी शूलों के कंधे से
बेवस लटका- सा।
सुलझ नही पाता अपना मन
किस को क्या सुलझाएँ।।

कोने मे सिकुड़ी गुड़िया सी
रही उपेक्षित आशा
साफ नही हो पायी अबतक
जीवन की परिभाषा।।
आग सुलगती रही सिंधु में कैसे उसे बुझाएँ।।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ