बरस रहे बदरा

बरस रहे बदरा

बरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

खुला झरोखा 
भीग रहा मन
जियरा को तरसाए
तरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

मन मयूर है, 
आकुल-ब्याकुल
छिन-छिन प्यास जगाए 
दरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

पिया-पिया- 
मन टेर रहा है,
मन में आस बढ़ाए
सरस रहे बदरा तुन नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

तुम तो व्यस्त 
हुए बिजुरी संग,
पल-पल रास रचाए
परस रहे बदरा तुन नहीँ  आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए
झर-झर झरती 
दुखिया-अँखियाँ
बुदियाँ आग लगाए
झरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

लता पवन संग 
झूम रही है
रह-रह लट उलझाये
करष रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

चुरा-चुरा रँग 
इन्द्र धनुष के
अँचरा को लहराए
अरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

रोम-रोम में 
प्रेम बसा है
पल-पल बढ़ता जाए
घरस रहे बदरा तुम नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए

प्रकृति ओढ़- 
कर चूनर धानी
मन ही मन मुसकाए 
हरष रहे बदरा तुम  नहीं आए
बरस रहे बदरा तुम नहीं आए
            *
~जयराम जय
पर्णिका-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास
कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)


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