वर्षा- शहर व गाँव

वर्षा- शहर व गाँव

जिस वर्षा की ख़ातिर नयन तरसते मेरे,
जिसकी ख़ातिर सूरज को भी नयन तरेरे।
वर्षा बरसी किच-किच आँगन, भीगे कपड़े,
व्यथित मन देख भरा जल,घर के बाहर मेरे।

खेतों में हरियाली छायी, किसान खुश है,
गर्मी से राहत मिली, हर इन्सान ख़ुश है।
प्रदूषण से मिलेगी मुक्ति, वृक्ष लगाकर,
पानी में नाव, बच्चों की मुस्कान ख़ुश है।

खेत खलिहान और झोपड़ी, ख़ुशी मनाते,
माटी की सौंधी ख़ुश्बू पाकर, मन इठलाते।
महलों की सुविधा में ख़लल, रंज बड़ा है,
गाँव रचते वर्षा को गीतों में, झूलों पर गाते।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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