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जहाँ तक धुंध दिखता है

जहाँ तक धुंध दिखता है 

डॉ रामकृष्ण मिश्र
जहाँ तक धुंध दिखता है वहीं तक राह है ,ऐसा नहीं है।
जो लिखते आँसुओं के गीत उनको दर्द का आभास है ,ऐसा नहीं है।।
पहाड़ों पर गरजते बादलों में जोश का पानी उवलता है।
मगर कुछ टूट जाते प्राण तन से खिलखिला , ऐसा नहीं है।।
हँसी में हम उड़ाएँ जिन्दगी के फूल के सपने भला क्यों कर।
किसी दिन टूट जाए छत कि फिर आकाश भी ,ऐसा नहीं है।।
बहुत बेताब झंझा का हथौड़ा भी उठे कुछ दूर चलने पर।
न बरसेगी सुहानी चाँदनी की महक भी, ऐसा नहीं है।।
बहस के विषय की तासीर को समझे विना बोले तो क्या बोले।
भले सब मौन हैं कुछ बात होगी तो मगर गूँगे हुए ऐसा नहीं है।। 
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रामकृष्ण
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