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सर्वोच्च न्यायालय का कावड़ यात्रियों की आस्था पर एक तरफा हमला असहनीय -हिंदू संगठन

सर्वोच्च न्यायालय का कावड़ यात्रियों की आस्था पर एक तरफा हमला असहनीय -हिंदू संगठन

अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुन्ना कुमार शर्मा की अध्यक्षता में हुई हिंदू संगठनों की बैठक में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिंदू कावड़ियों को पहचान छुपाए मुस्लिम ढाबों पर खाने के लिए मजबूर करना सर्वोच्च न्यायालय का हिंदू आस्थाओं पर एक तरफा हमला बताया।
बैठक में हिंदू संगठनों को संबोधित करते हुए श्री मुन्ना कुमार शर्मा ने कहा की सर्वोच्च न्यायालय के जजों को यह शोभा नहीं देता कि वह धार्मिक मामलों में बिना कावड़ यात्रियों पक्ष सुने अपना मनमाना फैसला देकर न्याय व्यवस्था का गला घोट दें। फैसला भी ऐसा कि जिससे कावड़ यात्रियों की न केवल धार्मिक आस्थाओं का हनन् हो बल्कि धार्मिक यात्रा की पवित्रता पर हमला करके यात्रा का महत्व और पुण्य ही खत्म हो जाए।
सुप्रीम कोर्ट के जजों को सोचना चाहिए की जिस यात्रा के दौरान कांवड़ियें पूर्णत ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए पैदल नंगे पांव हरिद्वार से सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हैं। ऐसी तीर्थ यात्रा में खानपान की मर्यादा शुचिता और पवित्रता भी होती है । ऐसे में मांसाहारी, मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने और भोजन को थूककर हलाल करने के कुरानी आदेशों पर विश्वास करने वाले, शौचालय जाकर मिट्टी से हाथ न धोने वाले मुस्लिमों के ढाबों पर खाने से इस यात्रा का सारा पुण्य और अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है ।
श्री मुन्ना कुमार शर्मा ने हिंदू संगठनों को संबोधित करते हुए हिंदू संगठनों को सचेत किया और जगाया कि मुस्लिमों से रोटी- बेटी का संबंध हमारे पूर्वज सैकड़ो साल पूर्व ही समाप्त कर चुके हैं।
ऐसे में हिंदू संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय के जजों का मुस्लिमों से रोटी का संबंध कायम करने की पहल को अनावश्यक बताया। सर्वोच्च न्यायालय के जजों को समझना चाहिए कि कल मुस्लिम ढाबों पर रोटी खाते हुए हमारे कावड़ियों का उनकी किसी लड़की से प्रेम हो गया और वह प्रेम शादी तक पहुंच गया तो मुसलमान जैसा कि पहले भी कर चुके हैं उस हिन्दू लड़के और उस हिन्दू बनी लड़की को जान से मार डालेंगे। इसी कारण से हम उनसे रोटी का संबंध कायम करने को तैयार नहीं है । इसके अलावा आज तक किसी भी मुस्लिम तलाकशुदा महिला का हलाला हिन्दुओं से न कराना भी मुस्लिमों की संकीर्ण मानसिकता का परिचय देता है। जबकि उत्तम गुणों वाली संतान के लिए दूर का रिश्ता होना जरूरी है।
सर्वोच्च न्यायालय के जजों को उन मुसलमानों से पूछना चाहिए कि वह तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं का हलाला हिंदुओं से क्यों नहीं कराते? इसी सवाल में सर्वोच्च न्यायालय के जजों को पता चल जाएगा कि जो मुस्लिम हिन्दुओं से अपनी बेटी का संबंध कायम करना हीन समझते हैं ऐसे सम्बन्ध बनाने वाले हिन्दू लड़के को मार देते हैं। तो हम हिन्दू मुस्लिमों के ढाबों पर जाकर उनसे रोटी का संबंध कैसे कायम कर सकते हैं ।
हिंदू संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय के जजों को चेताया कि वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप ना करें और अपनी संवैधानिक हद में रहे। पूर्व में हम देख ही चुके हैं कि जब 1857 में अंग्रेजों ने हिंदू सैनिकों को गाय की चर्बी चढ़े कारतूसों को दांत से कुतरने का आदेश दिया तो यह हिंदुओं और खासकर पंडितों ने अपनी धार्मिक आस्था और खान पान की शुचिता पर हमला माना। अंग्रेज़ों ने सैनिकों को अंधेरे में रखा कि कारतूसों पर गाय और सुअर की चर्बी का लेप नही हैं किंतु जब वास्तविकता का पता चला कि अंग्रेजो ने झूठ बोलकर ही हिन्दुओं की खास तौर से पंडितो की खानपान संबंधी धार्मिक आस्थाओं पर हमला किया तो मंगल पांडे ने झूठ बोल रहे अंग्रेज को तुरंत गोली मार दी । बाद में खानपान संबंधी आस्थाओं को ठेस पहुँचाने के इसी मामले ने 1857 की क्रांति का रूप ले लिया जिसमे लाखों अंग्रेजो के सिर काट दिए गए। उनके चर्चो में आग लगा दी गई। जिनमे कश्मीरी गेट दिल्ली का चर्च भी शामिल हैं। खानपान संबंधी इस क्रांति में हमारे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के बच्चो और औरतों को भी जिंदा जला दिया।
हिंदू संगठनों ने अंग्रेजी में गिटपिट करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के जजों को चेताया कि वह 1857 की क्रांति से सबक ले और हिंदुओं के खान-पान सम्बंधित नियमों और आस्थाओं को ठेस मत पहुंचाएं। जजों को खासतौर से सर्वोच्च न्यायालय के जजों को यह शोभा नहीं देता कि वें कोई भी फैसला कांवड़ियों और हिंदू संगठनों का पक्ष सुने बिना लें। यह न्याय का गला घोंटना है।
उत्तर प्रदेश सरकार का कानून दुकान पर दुकान मालिक का नाम लिखने का आदेश देता है ऐसे में जजों के लिए जरूरी है कि वें उस कानून के अनुसार ही फैसला दें|
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