अघोषित आपातकाल बताते, जो सत्ता को गाली देते,
सड़कों पर गुंडागर्दी, जो आतंकवाद को संरक्षण देते।बस थोडी सी हवा चली, जब राष्ट्र भक्त भी जाग गये,
आपातकाल के गुनहगार, वह भक्तों को बतला देते।
अभिव्यक्ति के नाम पर वो, निराधार आरोप लगाते हैं,
सी एम पी एम को गाली, अघोषित आपातकाल बताते हैं।
सिल जाते हैं होंठ, बात हो जब घोषित आपातकाल की,
वामपंथी सभी यहां, भारत के विरुद्ध अभियान चलाते हैं।
संविधान पर हमला कहते, खुद संविधान के हत्यारे,
अभिव्यक्ति पर आरोप लगाते, अभिव्यक्ति के हत्यारे।
ज़रा मुँह खोलने पर जिसने, जेलों में सडवा डाला था,
मानवाधिकार बिगुल बजाते, मानवाधिकार के हत्यारे।
अ कीर्ति वर्द्धन
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