चलो अब मुस्कुराएँ हँसे अपने आप पर भी तो।

चलो अब मुस्कुराएँ हँसे अपने आप पर भी तो।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
चलो अब मुस्कुराएँ हँसे अपने आप पर भी तो।  
कि कैसे दिख रहे हैं आईने में हार कर भी तो।।
नहीं चिंता हुई जिनको कहाँ रहना कहाँ जाना।
उन्हें ही मिला है सम्मान भी उपहार वर भी तो।।
स्वयं जो हार कर भी जीतने का गुर समझते हैंं।
वही इतिहास को देते नया समवेत स्वर भी तो।।
धरा यह नहीं उनकी जो बनाते सेतु धसने को।
वतन की अस्मिता अक्षुण्ण उज्ज्वल हो प्रखर भी तो।।
हमारी दृष्टि में समता स्वधर्मा लोक मंगल है। 
सहज संकल्प में संवेदना का हो असर भी तो।।
पहाड़ों सी समस्याएँ चिढ़ाती हों मगर फिर भी। 
हमारे हौसलो की उसी पर होती नजर भी तो।।
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