जमाना हुआ है जालिम ,

जमाना हुआ है जालिम ,

चलना संभल संभल के ।
इस पल पता न क्या हो ,
भरोसा क्या उस पल के ।।
किसी को सगा न कहना ,
भले तुम ठगा सा रहना ।
ग़म रंजिश जीवन में आए ,
हॅंस हॅंसकर ही तू सहना ।।
आऍंगे तूफान भी अवश्य ,
चले जाऍंगे स्वत: टल के ।
हासिल होगा न कुछ भी ,
रह जाऍंगे वे हाथ मल के ।।
निज भाव सदा तू बहना ,
संस्कार ही तेरा है गहना ।
बाधाऍं भी मार्ग जो आऍं ,
निज को गर्क में न ढहना ।।
आज सहन जो कर गए ,
स्वामी भी तुम्हीं कल के ।
सफल संघर्ष यह तुम्हारा ,
पहुॅंच पाए हो यहाॅं चलके ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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