श्रीकृष्ण गांधारी संवाद
आनंद हठिला पादरली
पुत्र वियोग में तड़पती गांधारी जब कृष्ण को श्राप देने चली तब कृष्ण गांधारी से कहते है
माता मैं शोक मोह पीड़ा सबसे परे हूँ !
न जीत में न हार में न मान में , न अपमान में
न जीवन में , न मृत्यु में न सत्य में , न असत्य में
मैं किसी में नही बंधा हुं माता है !
काल ,महाकाल सब मेरे दास है !
मैं उन्ही से अपने कार्य सिद्ध करवाता हूँ !
हे माता युद्ध अवश्यम्भावी था ..
जो चले गए है उन पर शोक मत करो बल्कि जो है उन्हें स्वीकारो माता ..!!
वर्तमान को स्वीकारो माता भूत दुख का कारण बनता है !
कृष्णा की बात सुनकर गांधारी विलाप करते हुए बोली;
कृष्ण ...!!!
तुम ऐसा कह सकते हो क्योंकि तुम माँ नही हो !
कृष्ण तुम क्या जानो एक माँ की ममता ..!!!
तुम क्या जानो पुत्र शोक की पीड़ा क्या होती है !!!
तुम कहते हो मोह त्याग दो और ज्ञान की बातें बतलाते हो तो जाओ कभी अपनी माता देवकी से पूछना कि पुत्र शोक क्या होता है ..!!
पूछना देवकी से कि कैसा लगता था जब कंस उसके कलेजे के टुकड़ों की हत्या कर देता था ..!
पूछना जब उसका दूध उतरता था और बच्चा न होने की वजह से जब देवकी व्यथित हो जाती थी तब पूछना उसको कैसी पीड़ा होती थी .!!
पूछना वासुदेव कभी पूछना ..!!
ऐसा कहकर गांधारी धम्म से धरती पर गिर जाती है फिर कृष्ण गांधारी को सम्हालते है उनके आँखों से निकल रही अश्रु धारा को पोंछते है !
गांधारी फिर रोते हुए रुंधे रुंधे कंठ से कहती है कि ...
कृष्ण तुम्हारी माता ने तो छह पुत्रों को खोया है परंतु मै अपने 100 पुत्रों को खो चुकी हूँ ..!
कृष्ण ..!
कृष्ण गांधारी को पुनः समझाते हुए कहते है ; परंतु माता कौरवों ने वही मार्ग चुना जिसमे उनका पतन निश्चित था अब मैं किसी के कर्म क्षेत्र पर तो अधिकार नही जमा सकता .!!
कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है माते ..!!
गांधारी कृष्ण की तरफ अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए बोली;
हुँह ..! ये कहना आसान है 'केशव' परंतु एक माता के लिए उसका पुत्र ही महत्वपूर्ण होता है ! वह लायक है या नालायक इसका माँ की ममता पर कोई प्रभाव नही पड़ता ..!!
जितना दुख उसे लायक पुत्र की मृत्यु पर होता है उतना ही नालायक पुत्र पर ..!
लोग कहते है कि तुम आदि ब्रम्ह हो लेकिन हो तो पुरुष ही कलेजा बज्र का ही रहेगा।
माता पार्वती देवी होते हुए भी अपने पुत्र गणेश का शोक सहन नही कर पाती है !
'हे कृष्ण' कभी "माँ " बनकर देखना तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा गीता ज्ञान ममता के आगे कितना टिकता है !
यदि मोह ममता अज्ञान का परिचायक है तो तुमने इस मोह के संसार की रचना क्यों की ..?
बना लेते अपने ज्ञानियों का संसार क्या आवश्यकता थी मोह ममता के संसार के रचना की ..
तुम भी जानते हो तुम्हारा ज्ञान नीरस है ,निर्जीव है इतना यथार्थवादी है कि उससे संसार नही चल पाएगा तभी तुम मोह ममता का सहारा लेते हो ...
तभी वहाँ सभी पांडव आ जाते है जिन्हें कृष्ण इशारे से बाहर जाने का संकेत देते है मगर युद्धिष्ठर संकेत को नही समझ पाते है और गांधारी के पास आकर क्षमा माँगते हुए कहते है;
बड़ी माँ हम दोषी है आपके,
हम अपराधी है आपके,
हो सके तो माता हमे क्षमा कर दो ..
युद्धिष्ठिर की वाणी को सुनकर गांधारी क्रोध में भर जाती है !
उन्हें दुर्योधन की टूटी जंघा, दुःशासन की छाती को चीरकर लहू पीता हुआ भीम का स्मरण होने लगता है कृष्ण समझ चुके थे कि गांधारी अब पुत्र शोक में पांडवों को श्राप दे देगी इसलिए कृष्ण गांधारी का ध्यान पांडवो की तरफ से हटाने के लिए व्यंग कहते है ...
हे माता टूटना ही था उस जंघा को जिसने आपकी पुत्र वधु का अपमान किया उस छाती को चीरना आवश्यक था जिसने द्रौपदी के केशों को छूने की धृष्टता की .. इन सबका विनाश आवश्यक था अन्यथा इनके किये गए कृत्यों को मानव अपना आदर्श बना लेता जिससे एक शिष्ट समाज की कल्पना भी नही की जा सकती ..
हे माता जिन पर आप शोक कर रही हो वो शोक के योग्य नही है ..!
कृष्ण के कहे वाक्यों को सुनकर गांधारी क्रोध से तपने लगती है और कठोर वाणी में कहती है;
'हे यादव , हे माधव' मैं शिवभक्तिनि गांधारी अपने पतिव्रत धर्म से एकत्रित किये गए पुण्य शक्ति से तुम्हे शाप देती हूँ जिस तरह से कुरुवंश का विनाश हुआ है उसी तरह से पूरे यदुवंश का भी विनाश हो जाये ....
जब गांधारी ने ऐसा कहा तो कृष्ण बोले हे माता यह शाप आपने मुझे नही स्वयं को दिया है ! अभी अपने 100 पुत्रों का पूर्णतः शोक मना भी नही था कि आपने अपने एक और पुत्र को शाप दे दिया ,,
हे माता क्या आप मेरा शव देख पाएंगी ...!!
माते ..!
मुझे आपका शाप स्वीकार है क्योंकि न तो मेरी मृत्यु होती है और न ही जन्म ना ही मेरा इस शरीर से कोई प्रेम है,
माते आपका इस शरीर से प्रेम है और आपने शाप देकर स्वयं को फिर दुःख सागर में डुबो दिया ....
कृष्ण की यह बात सुनकर गांधारी को अपने किये पर पश्चाताप हुआ और बोली 'हे गोविंद' कुरुवंश को नही बचा पाए मगर यदुवंश को ही बचा लो; मैं तुमसे भिक्षा माँगती हूँ
'हे माधव' ..
अब मैं अपने और पुत्रों के शव नही देखना चाहती ..!
कृष्ण गांधारी से कहते है हे माते ..!
न मैंने कुरुवंशियों के कर्म पर अपना प्रभाव जमाया और न ही मैं यदुवंशियों के कर्म क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित करूँगा ..!
यदुवंशी भी अपने कर्मो का भुगतान करेंगे जैसे कुरुवंशियों ने किया !
हे माता मैं किसी भी स्थिति में धर्म का त्याग नही कर सकता ..
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