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दो मुर्दों का समागम

दो मुर्दों का समागम

दो मुर्दों का समागम,
नहीं चंद्रगुप्त और चाणक्य पैदा होते।
जड़ों से जुड़ने की आग,
बिना, वीरता का नाद नहीं गूंजते।

इतिहास के पन्नों में दबी,
वीरता की गाथाएँ सोई हुई हैं।
उन गाथाओं को जगाने के लिए,
हमें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा।

चाणक्य की नीति,
और चंद्रगुप्त का साहस,
दोनों मिलकर बनाते हैं,
महान साम्राज्य का निर्माण।

लेकिन, दो मुर्दों का मिलन,
नहीं कुछ भी पैदा कर सकता।
हमें जीवित रहना होगा,
अपनी संस्कृति और धर्म को बचाने के लिए।

हमें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा,
और अपनी विरासत को आगे बढ़ाना होगा।
तभी, हम चंद्रगुप्त और चाणक्य बन सकते हैं।

दो मुर्दों का समागम,
नहीं चंद्रगुप्त और चाणक्य पैदा होते।
जड़ों से जुड़ने की आग,
बिना, वीरता का नाद नहीं गूंजते।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
"कमल की कलम से"
( शब्दों का वह रंगमंच, जहाँ भावनाएँ जीवंत होती हैं )
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