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बातों में चिंगारी ले कर सड़कों पर हैं चलते लोग।

बातों में चिंगारी ले कर सड़कों पर हैं चलते लोग।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
बातों में चिंगारी ले कर सड़कों पर हैं चलते लोग।
कहते इसी तरह जीवन की ऊँचाई हैं चढ़ते लोग।।
झूठों की बाजारू कीमत नहीं आँक सकता कोई।
हवा मिलावट की बहती है यथाशक्ति हैं सहते लोग।।
कुर्सी, सत्ता की क्रीडाएँ बहुत मनोरम होती हैं।
बैर- मित्रता हैं सम रूपी चटकारें ले चखते लोग।।
काले चश्मे में सूरज भी काला ही दिख पाता है।
अपनी जिद के आगे मेघों जैसे खूब गरजते लोग।।
अच्छे को अच्छा कहना भी गैर मुनासिब लगता है।
वाधा कई खड़ी कर देना अपना शौर्य समझते लोग।।
आग -आग का खेल खेलना जरा सोचिए अच्छा है??
कालिख पुते चेहरे में भी लगता खूब झलकते लोग।। 
रामकृष्ण
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