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सीमा का तिलक करती गाँव की माटी

सीमा का तिलक करती गाँव की माटी

डॉ.अवधेश कुमार 'अवध'

शिवजी के धनुष पर विराजमान है काशी और गंगा मैया काशी की अधिकांश सीमा को समेट लेने के लिए धनुषाकार हो गई हैं। दूरियों को मिटाती हुई चन्द्रप्रभा भी मिलन को सदियों से आतुर है। इसकी गोदी में राजदरी और देवदरी के चस्में चंचल बच्चों सरिस उछल कूद रहे हैं। यहीं पर भभौरा गाँव में 10 जुलाई 1951 को क्षत्रिय कुल में एक शिशु का आगमन हुआ। गंगा, चन्द्रप्रभा और विन्ध्य की श्रृंखलाओं से संरक्षित वह शिशु आज भारत वर्ष की रक्षा का गुरुतर दायित्व अपने मजबूत कंधों पर लिए संयमित गर्व से मुस्करा रहा है।


जनता पार्टी के विघटन के उपरान्त 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया जो जनसंघ का नवीन संस्करण था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कठोर अनुशासन और राष्ट्रवाद जनसंघ की ही भाँति भाजपा में भी स्थानान्तरित हुआ था। भाजपा के लिए देश के प्राय: हर कोने में प्यार था, सम्मान था पर जनमत का अभाव भा। श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में श्री लालकृष्ण आडवाणी और श्री मुरली मनोहर जोशी दो भुजाओं की भाँति सहयोगी बने। संसद में एक, दो या तीन उपस्थितियों से संतोष करना पड़ता। इस न्यून गणितीय संख्या के बाद भी अटल जी का कद सदैव ऊँचा रहा। संघर्ष जारी रहा।


इस संघर्ष का दूसरा पहलू यह था कि तपे तपाये कार्यकर्ता संघ की ओर से भाजपा की ओर उन्मुख होते रहे। चन्द्रप्रभा के पावन आँचल का फूल विन्ध्याचल की गोदी में भौतिकी का व्याख्याता बनकर मिर्जापुर के के बी डी सी कॉलेज में कार्यरत था। चन्द्र की प्रभा से सराबोर उगता सूरज जैसा बाबू राजनाथ सिंह। अटल, आडवानी और जोशी से आशीष युक्त थ्री इन वन। जुनून बढ़ता गया, जिम्मेवारियाँ मिलती गईं, कद बढ़ता गया। 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार में भाजपा की साझेदारी ने राजनीतिक जनाधार को और मजबूत किया। मंडल ने समाज को और कमंडल ने धर्म -जागृति को ताकत दी। भाजपा का विभिन्न राज्यों और केन्द्र में सत्तासीन और सत्ताच्युत होना अर्थात् सरकार में या विपक्ष में रहते हुए सदन में उपस्थित रहने का अधिकार बना रहा।


भाजपा के राजनीतिक उत्थान के साथ राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश भाजपा इकाई के अध्यक्ष, मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश, मन्त्री भारत सरकार और भाजपा राष्ट्रीय इकाई के अध्यक्ष पद को सुशोभित किए। सामाजिक परिवर्तन, कांग्रेस के नैतिक पतन और छद्म धर्म निरपेक्षता की अकुलाहट ने 2014 में माननीय राजनाथ सिंह को कुछ बहुत बड़ा विकल्प सोचने पर मजबूर कर दिया। मनमोहन सरकार की आत्ममुग्धता और कुकुरमुत्ते सरिस केजरीवाल के अगमन ने भाजपा प्रमुख होने के नाते राजनाथ सिंह के भीतर के कर्त्तव्य बोध को संयम तोड़ बगावती बना दिया। राष्ट्र के समक्ष मान- अपमान, राग- द्वेष, जय- पराजय इत्यादि को गौण बना दिया। तब भाजपा अध्यक्ष ने राष्ट्र को सुशासन देने हुए संकल्प लिया और इसके लिए जननेता, जनमत और जनादेश की थ्योरी पर काम करने लगे। अध्यक्षीय अधिकार का पूर्ण प्रयोग करते हुए राष्ट्रव्यापी भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमन्त्री के रूप में घोषित किये। वरिष्ठों के कोप और कनिष्ठों के बगावत के असर से बहुत आगे निकल चुके थे।


2014 का चुनाव ऐतिहासिक रहा। मोदी के मजबूत हाथों में देश की बागडोर थमाकर अमित शाह को अध्यक्ष बनाकर खुद गृहमन्त्री बने। वाशिंगटन को कहना पड़ा कि भारत में पहली बार भारतीय सरकार बनी है। भारत की अस्मिता और मोदी -मोदी से देश ही नहीं अपितु विश्व गूँज उठा। 2019 का भारी बहुमत 2014 की विजय - बुनियाद पर आधारित है। इस नई सरकार में श्री सिंह ने रक्षामन्त्री का दायित्व लिया है। 2024 में भी दम -खम, दायित्व और दायित्वबोध बरकरार है।


बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न माननीय राजनाथ सिंह कर्तव्य का पालन और अधिकार का उपयोग करना भली भाँति जानते हैं। जहाँ एक ओर राजनीति गाली का पर्याय या काजल की कोठरी बनी हुई है, राजनाथ सिंह उसमें भी तपकर सोना से कुंदन बन गए........ नि:स्वार्थ, निष्कपट, निष्कलंक। इस कर्मयोगी राजर्षि को वर्तमान प्रणाम करता है और भविष्य गर्व करेगा। धन्य है चन्दौली की माटी और धन्य है इस माटी का सपूत।

डॉ. अवधेश कुमार अवध
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