घर के बुजुर्ग

घर के बुजुर्ग

घर के बुजुर्ग देव सदृश हमारे ,
घर के बुजुर्ग हमारे ये पूज्य हैं ।
घर का भला बुरा सोचनेवाले ,
होते ही कहाॅं कोई ये दूज्य हैं ।।
घर के बुजुर्ग हॅंसते जो मिले ,
बुजुर्ग दम्पत्ति ये खुशहाल हैं ।
बेटे बहू आदर हैं बहुत करते ,
सहर्ष बीतते प्रत्येक साल हैं ।।
हॅंसते बुजुर्ग का अर्थ नहीं ये ,
हॅंसता बुजुर्ग अमीर घराना है ।
अमीरी से भी अति बहुमूल्य ,
आदर सम्मान का खजाना है ।।
बहू समझ जाए बुजुर्ग को ,
आशीष से घर स्वर्ग होता है ।
अपमानित हो बुजुर्ग ये घर में ,
मायूसी बुजुर्ग का वर्ग होता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ