जगन्नाथ के काल-चक्र की गति है निर्मम।

जगन्नाथ के काल-चक्र की गति है निर्मम।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जगन्नाथ के काल-चक्र की गति है निर्मम।
महज करवटों में ही रात गुजर जाती है,
स्वप्न-कंटकित होकर रात सिहर जाती है ;
बात न मेरी कभी समझ पाओगे,हमदम!
सूचि- विवर में धागा बरबस पड़ा ही रहे,
सुबह शाम में ढल जाती है बिना ही कहे;
दुहराई जाती है यही कहानी हरदम ।
सागर की बेचैनी गुम्फित लहर-लहर में,
मानव-श्वापद विचर रहे हैं शहर-शहर में;
सड़क-सड़क के चप्पे चप्पे बैठा है यम।
हुए गुजश्ता कितने ही कल बेहद बेकल,
आनेवाले कल के लिए व्यर्थ हैं विह्वल ;
 ऊहापोह निरर्थक, आओ गले मिलें हम।
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