अब मैं किश्तों में मर रहा हूँ।।

अब मैं किश्तों में मर रहा हूँ।।

एक दिन भरी जवानी थी।
सोचा यह नहीं जानी थी।
पर जैसे उम्र साठ का हुआ।
नौकरी से मैं विदा हुआ।
काले बालों पर सफेदी छाने लगी।
सब कहते बुढ़ापा आने लगी।
पर मन इसे मानता नहीं था।
अपनी अगली गति यह जानता नहीं था।
सफेद बाल भी झड़ने लगे।
कानों से कम सुनाई पड़ने लगे।
एक एक कर दांत गिर रहा है।
मुंह का शक्ल यों बिगड़ रहा है।
आंखों से साफ सुझ नहीं पा रहा है।
इन पर अब लेन्स चढ़ता जा रहा है।
पैर शरीर ढोना नहीं चाहते हैं।
थोड़ा दूर चलकर कराहते हैं।
दिल की बेकरारी बढ़ गई है।
अनेकों तरह की बिमारी बढ़ गई है।
नींद ने भी साथ छोड़ दिया है।
चैन सकुन ने भी मुंह मोड़ लिया है।
अब आगे की गति का इंतजार कर रहा हूँ।
अब मैं किश्तों में मर रहा हूँ।। 
जय प्रकाश कुवंर
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