उदासी का सबब

उदासी का सबब

डॉ. अंकेश कुमार
पल - पल सरकती रेत सी जिंदगी,
मीठे पलों को,
एकबारगी -
रुखसत करती ये जिंदगी।
उदासी का सबब वो नही,
मैं ही तो हूं।
जानता हूं,
सब रीति रिवाज का खेल है।
खेलता मगर,
मैं ही तो हूं।
तुम्हारी नादानियां,
नाज़-नखरे, हंसी-खेल,
तुझमें बसता,
मैं ही तो हूं।
तुम्हारी खुशियां कब रही
हमसे अलग?
तुम्हारे सपने,तुम्हारे संकल्प,
स्पंदित होते हृदय की धड़कनों
में,
पल-पल पलकों पे संजोए
तेरी हसीन ख्वाहिशों को
संवारता कोई और नहीं
मैं ही तो हूं।
जानता हूं चक्र एक पूरा हुआ,
दूसरा शुरू होगा।
भावनाओं के भंवर में उलझा
मगर,
मैं ही तो हूं।
मिले हर किसी को खुशी
उम्रभर।
बगिया तेरी,
महके, चहके।
खिल-खिल जाओ,
आकाश भर।
ओस की नम् बूंदों में
साथ तुम्हारे गुनगुनाता
मैं ही तो हूं।
डॉ. अंकेश कुमार,
पटना(बिहार)


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