यहाँ सबको अपनी अपनी पड़ी है,
चाह किसी की छोटी तो किसी की बहुत बड़ी है।कोई भूख मिटाना चाहता है,
कोई ठूस ठूस कर खाना चाहता है।
कोई थोड़ा सा पा जाने में भी खुश है,
कोई बहुत पा जाने पर भी दुखी है।
मन में संतोष न होना सब दुखों का कारण है,
इस भयंकर रोग का नहीं कोई निवारण है।
कुदरत ने जितना दिया है उसे सम्भाल कर रखो,
जितना मिला है उसमें ही खुशी से जीना सिखो।
जय प्रकाश कुवंर
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